Sunday, June 10, 2012

शामे मेरी भी अब बेसदा हो गई



जिंदगी मेरी  अब सजा  हो गई
मौत भी  मुझसे बेवफा  हो गई

मोहब्बत का पैगाम न आया कोई
जाने हमसे  क्या खता  हो गई

रंजो गम फैला है इन हवाओं में
क्यूँ हमसे खफा ये सबा हो गई

खामोश बैठे है महफ़िल में इस तरह 
शामे मेरी भी अब बेसदा हो गई  

भटकते कदमों की आरही है सदा
उनकी आवारगी की इन्तिहाँ हो गई
                           (अनु -20/5/2012)

8 comments:

  1. मोहब्बत का पैगाम न आया कोई
    जाने हमसे क्या खता हो गई

    बहुत खूब ... लाजवाब शेर है ... वैसे ऐसे पैगाम का न आना खता नहीं उनका अंदाज़ है ...

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  2. waah behad khubsurat

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  3. वाह!!! क्या बात है.... बहुत खूब लिखा है आपने ....

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