Thursday, June 17, 2010

क्या करूं क्या करूं इश्क नादान है

दर्द है दिल में और दिल परेशान है

बस यही दर्द अब मेरी पहचान है

 

हम तेरी  आरजू में  फना होगये

मेरी चाहत से बस तू ही अनजान है

 

अपना जीना फकत एक एहसास है

जिस्म में  जिंदगी जैसे मेहमान है

 

हँसती रहती हूँ दिल को भी बहलाती हूँ

पर लबो की  हँसी भी तो  बेजान है

 

तुझ को चाहा मेरी बस यही है खता

क्या करूं क्या करूं  इश्क नादान है

 

मिल गई दिल लगाने कि हमको सजा

फिर इस बात से दिल क्यों हैरान है

 

हर सु फैली हुई है ये कैसी घुटन

बस इक ताजी हवा का ही अरमान है 

 

हर पल बिकता यहाँ ईमान है

कैसी दुनिया है ये कैसा इंसान है  

                             (अनु -12/6/2010)

Posted via email from धड़कन

1 comment:

यूँ चुप न रहिये ... कुछ तो कहिये