सहराए जीस्त में गुलदान सजा रखा है
प्यार का दिया हवाओ में जला रखा है
रोज़ ख़्वाबों में गिला करता है वफाओं की
एक मुद्दत से हमें जिसने भुला रखा है
जाने वाले पलट के अलविदा तो कह जाते
दिल को उम्मीद के साये में बिठा रखा है
याद करते ही उन्हें डबडबा गयी आंखे
जाने हमने भी ये क्या रोग लगा रखा है
फूल का खुशबू से नाता सदा नहीं रहता
प्यार के लिए जुदाई का सिला रखा है
(अनु २६/१२/२०१०)