Sunday, December 26, 2010

प्यार का दिया हवाओ में जला रखा है




सहराए जीस्त में गुलदान सजा रखा है
प्यार का दिया हवाओ में जला रखा है

रोज़ ख़्वाबों में गिला करता है वफाओं की
एक मुद्दत से हमें जिसने भुला रखा है

जाने वाले पलट के अलविदा तो कह जाते
दिल को उम्मीद के साये में बिठा रखा है

याद करते ही उन्हें डबडबा गयी आंखे
जाने हमने भी ये क्या रोग लगा रखा है

फूल का खुशबू से नाता सदा नहीं रहता
प्यार के लिए जुदाई का सिला रखा है
(अनु २६/१२/२०१०)

Saturday, December 18, 2010

दर्द है दिल में और दिल परेशान है



दर्द है दिल में और दिल परेशान है
बस यही दर्द अब मेरी पहचान है

हम तेरी  आरजू में  फना होगये
मेरी चाहत से बस तू ही अनजान है

अपना जीना फकत एक एहसास है
जिस्म में  जिंदगी जैसे मेहमान है

हँसती रहती हूँ दिल को भी बहलाती हूँ
पर लबो की  हँसी भी तो  बेजान है

तुझ को चाहा मेरी बस यही है खता
क्या करूं क्या करूं  इश्क नादान है

मिल गई दिल लगाने कि हमको सजा
फिर इस बात से दिल क्यों हैरान है

हर सु फैली हुई है ये कैसी घुटन
बस इक ताजी हवा का ही अरमान है 

हर पल बिकता यहाँ ईमान है
कैसी दुनिया है ये कैसा इंसान है  
                             

Wednesday, December 1, 2010

इश्क का महल हो गया है खंडहर देखना

 
 
 
बेरंग सी इन दीवारों को बेवजह देखना



इश्क का महल हो गया है खंडहर देखना




रिश्ता तोडा भी नहीं उसने निभाया भी नहीं


है बावफा के हाथ में भी इक खंजर देखना




मेरे जख्मो को कोई मरहम मिले न मिले


मिले मेरी लाश को इक जमीं बंजर देखना




इतनी तन्हा हूँ कि घबराती है तन्हाई भी


है तन्हाई को हमसे बिछड़ने का डर देखना




ऐ मेरे हम नफ्स तुम गर थोड़ा साथ दो


पल दो पल ही है गम की ये सहर देखना