इश्क का महल हो गया है खंडहर देखना
बेरंग सी इन दीवारों को बेवजह देखना
इश्क का महल हो गया है खंडहर देखना
रिश्ता तोडा भी नहीं उसने निभाया भी नहीं
है बावफा के हाथ में भी इक खंजर देखना
मेरे जख्मो को कोई मरहम मिले न मिले
मिले मेरी लाश को इक जमीं बंजर देखना
इतनी तन्हा हूँ कि घबराती है तन्हाई भी
है तन्हाई को हमसे बिछड़ने का डर देखना
ऐ मेरे हम नफ्स तुम गर थोड़ा साथ दो
पल दो पल ही है गम की ये सहर देखना
वाह...
ReplyDeleteबहुत उम्दा... खूब...
अनु जी,
ReplyDeleteसुभानाल्लाह......उर्दू की मिठास लिए हुए खुबसूरत ग़ज़ल....हर शेर उम्दा...और तस्वीर पोस्ट में चार चाँद लगा रही है......बहुत खूब|
बहुत खूब कहा है।
ReplyDelete'ऐ मेरे हम नफ्स तुम गर थोड़ा साथ दो
ReplyDeleteपल दो पल ही है गम की ये सहर देखना'
वाह ! क्या खूब कहा है.एक मासूम प्रेयसी जीती है तुम में और प्यारी पत्नी भी ये ख्वाहिश तो दोनों ही कर सकती है.
प्यार आ रहा है तुम्हारी इस नज्म की इन पंक्तियों पर.शे'र कहते हैं क्या इसे ? मुझे नही मालूम पर जो है बहुत खूब है क्योंकि ये दिल से निकली है.
बहुत खूबसूरत गज़ल सुंदर एहसासों में ढली.
ReplyDeleteऔर अब तो आपके परिवार को भी देख चुके हैं मुमु के घर की शादी में. बहुत अच्छा लगा.
मेरे जख्मो को कोई मरहम मिले न मिले
ReplyDeleteमिले मेरी लाश को इक जमीं बंजर देखना ...
बहुत सुन्दर गज़ल.हरेक शेर बहुत सुन्दर..अहसास से पूर्ण प्रस्तुति.
रिश्ता तोडा भी नहीं उसने निभाया भी नहीं
ReplyDeleteहै बावफा के हाथ में भी इक खंजर देखना ..
खूबसूरत ग़ज़ल है ... अक्सर बावफा हाथ में खंजर लिए चलते हैं ... बेवफा जो होते हैं वो तो पास भी नहीं आते ...
अनु जी,
ReplyDeleteदिल से आपका शुक्रिया करता हूँ की आप जज़्बात की पोस्ट को इतनी अहमियत देती हैं......मेरी मेहनत सफल है अगर पोस्ट आपके दिल की गहराइयों तक पहुँचती है......ये आपकी ज़र्रानवाज़ी है वरना हम किस काबिल है....मैं सिर्फ एक जरिया हूँ जो दिल से निकले जज्बातों को दुसरे दिलों तक पहुंचा रहा हूँ........उम्मीद है आप आगे भी ऐसे ही हौसला अफजाई करती रहेंगी......एक बार फिर शुक्रिया|
ऐ मेरे हम नफ्स तुम गर थोड़ा साथ दो
ReplyDeleteपल दो पल ही है गम की ये सहर देखना
bahot khoob arz kiya aapne!