दर्द है दिल में और दिल परेशान है
बस यही दर्द अब मेरी पहचान है
हम तेरी आरजू में फना होगये
मेरी चाहत से बस तू ही अनजान है
अपना जीना फकत एक एहसास है
जिस्म में जिंदगी जैसे मेहमान है
हँसती रहती हूँ दिल को भी बहलाती हूँ
पर लबो की हँसी भी तो बेजान है
तुझ को चाहा मेरी बस यही है खता
क्या करूं क्या करूं इश्क नादान है
मिल गई दिल लगाने कि हमको सजा
फिर इस बात से दिल क्यों हैरान है
हर सु फैली हुई है ये कैसी घुटन
बस इक ताजी हवा का ही अरमान है
हर पल बिकता यहाँ ईमान है
कैसी दुनिया है ये कैसा इंसान है
अपना जीना फकत एक एहसास है
ReplyDeleteजिस्म में जिंदगी जैसे मेहमान है
कोमल अहसासों से परिपूर्ण बहुत सुन्दर गज़ल..हरेक शेर दिल को छू लेता है
हर शेर लाजवाब और बेमिसाल ..
ReplyDeleteबहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
ReplyDeleteचुन चुन कर पगे हैं भाव और शब्द।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना है।
ReplyDeleteअनु जी,
ReplyDeleteवाह....बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल.....ये शेर बहुत अच्छे लगे ......
"अपना जीना फकत एक एहसास है
जिस्म में जिंदगी जैसे मेहमान है
हर सु फैली हुई है ये कैसी घुटन
बस इक ताजी हवा का ही अरमान है
हर पल बिकता यहाँ ईमान है
कैसी दुनिया है ये कैसा इंसान है"
जमीं पे बिखरी रेत को ,
ReplyDeleteआसमां की चाहत हो गई !
उसे पाने की आरज़ू जो की ,
तकदीर को हमसे शिकायत हो गई !
बहुत खूब लिखा है दोस्त बधाई !