Thursday, September 15, 2011

क्या मजा मिलता है तुझको मिट जाने में


कल दिया था दिल हमे किसी दीवाने ने
बेहोश बेदिल फिरते रहे हम अनजाने में

हाले दिल सुनाने से रहगया मेरा दिलदार
बाद मुद्दत के वो आया इस गरीबखाने में

नींद की कश्ती हमे सकूंने सहर तक ले गई
डूब गए होते रात हम गम के मयखाने में

नजर मिला कर जो नजर से देदिया साकी
कुर्बान लाखो जाम तेरे इस एक पैमाने पे

शमा हर रात पूछती है बैखोफ परवाने से
क्या मजा मिलता है तुझको मिट जाने में

क्या शिकवा किसी से है अपना अपना नसीब
कोई है मयखाने के बाहर है कोई मयखाने में

तेरी महफिल मेरी गजलों का जिक्र क्यों हो
हमको तो शायर भी बनाया है तेरे अफसाने ने
                                     (अनु -)