फना हो जाएगे सम्हलने तक
कौन जीता है रुत बदलने तक
जश्न कर जिंदगी के हमराही
साथ है रास्ता बदलने तक
पढ़ भी लो उम्र के हसीं सफहे
रौशनी है चराग जलने तक
अश्क आँखों में रोक कर रखना
लाजमी है ये रात ढलने तक
धुंध से भरा है सारा आलम
वो भी है सिर्फ आंख मलने तक
(16/2/2010-अनु)