Monday, April 5, 2010

वो भी जलता है तडपती है प्यास मेरी तरह


फिजां भी लगती है तन्हा उदास मेरी तरह
क्या इसे भी है किसी की तलाश मेरी तरह


चाँद सहरा की वादियों में भटका शब् भर 
वो भी जलता है तडपती है प्यास मेरी तरह

खुद को रखा है सब्ज आंसुओ की बारिश से 
यूँ तो आता है हिज्र किसे रास मेरी तरह

रोज आती है सरे शाम हिचकियाँ किस को 
याद आता है किसे कोई खास मेरी तर

फुरकत-ए-इश्क ने दुनिया उजाड़ दी जिसकी 
आज भी टूटी नहीं उसकी आस मेरी तरह

ज़िक्रे मज्लूम न पहुंची दरे इंसाफी तक 
हिम्मते कशमकश रही न काश मेरी तरह





Thursday, April 1, 2010

बाजी तो दिल की तुम भी हारे

हर रोज नए ख्वाब के इशारे
ये मुहब्बत के है झूठे सहारे

हम न जीते तो क्या हुआ
बाजी तो दिल की तुम भी हारे

शब का रास्ता पूछने वाले
नजाने कैसे अपना दिन गुजारे

झूठ है वो जो हम समझते है
कर्ज वफा के है तुमने उतारे

( 14/2/2010-अनु)

Posted via email from धड़कन