Thursday, April 1, 2010

बाजी तो दिल की तुम भी हारे

हर रोज नए ख्वाब के इशारे
ये मुहब्बत के है झूठे सहारे

हम न जीते तो क्या हुआ
बाजी तो दिल की तुम भी हारे

शब का रास्ता पूछने वाले
नजाने कैसे अपना दिन गुजारे

झूठ है वो जो हम समझते है
कर्ज वफा के है तुमने उतारे

( 14/2/2010-अनु)

Posted via email from धड़कन

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