फिजां भी लगती है तन्हा उदास मेरी तरह
क्या इसे भी है किसी की तलाश मेरी तरह
चाँद सहरा की वादियों में भटका शब् भर
वो भी जलता है तडपती है प्यास मेरी तरह
खुद को रखा है सब्ज आंसुओ की बारिश से
यूँ तो आता है हिज्र किसे रास मेरी तरह
रोज आती है सरे शाम हिचकियाँ किस को
याद आता है किसे कोई खास मेरी तर
ह
फुरकत-ए-इश्क ने दुनिया उजाड़ दी जिसकी
आज भी टूटी नहीं उसकी आस मेरी तरह
ज़िक्रे मज्लूम न पहुंची दरे इंसाफी तक
हिम्मते कशमकश रही न काश मेरी तरह
वाह, क्या बात है..
ReplyDeleteफुरकत-ए-इश्क ने दुनिया उजाड़ दी जिसकी
ReplyDeleteआज भी टूटी नहीं उसकी आस मेरी तरह
वाह आज तो दिल खुश हो गया
आप की शायरी सुभानल्लाह
सुन्दर
ReplyDeleteबंद हृदय के, कुछ अनसुलझे, बंध झटक कर खुल जाने दो,
भावों का वृहद वितान बना कुछ आवाजाही होने दो ।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
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