Monday, April 5, 2010

वो भी जलता है तडपती है प्यास मेरी तरह


फिजां भी लगती है तन्हा उदास मेरी तरह
क्या इसे भी है किसी की तलाश मेरी तरह


चाँद सहरा की वादियों में भटका शब् भर 
वो भी जलता है तडपती है प्यास मेरी तरह

खुद को रखा है सब्ज आंसुओ की बारिश से 
यूँ तो आता है हिज्र किसे रास मेरी तरह

रोज आती है सरे शाम हिचकियाँ किस को 
याद आता है किसे कोई खास मेरी तर

फुरकत-ए-इश्क ने दुनिया उजाड़ दी जिसकी 
आज भी टूटी नहीं उसकी आस मेरी तरह

ज़िक्रे मज्लूम न पहुंची दरे इंसाफी तक 
हिम्मते कशमकश रही न काश मेरी तरह





4 comments:

  1. फुरकत-ए-इश्क ने दुनिया उजाड़ दी जिसकी
    आज भी टूटी नहीं उसकी आस मेरी तरह

    वाह आज तो दिल खुश हो गया

    आप की शायरी सुभानल्लाह

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  2. सुन्दर
    बंद हृदय के, कुछ अनसुलझे, बंध झटक कर खुल जाने दो,
    भावों का वृहद वितान बना कुछ आवाजाही होने दो ।

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  3. बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

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