कयामत की रात ये ढलती नहीं क्यों
खिजा की रुत भी बदलती नहीं क्यों
क्याबतलाऊ मैं तुझको ऐ दिलबर
तन्हा रुत अब गुजरती नही क्यों
टुटा है जब से ख्वाब मेरी आँखों का
आंख शब भर मेरी लगती नहीं क्यों
अब्र आते है बरसते हैं चले जाते है
कली दिल की मगर खिलती नहीं क्यों
बैठी हूँ बीच दरिया में मगर
प्यास ये मेरी बुझती नहीं क्यों
(अनु )