Monday, December 31, 2012

धुँआ धुँआ

 

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धुँआ धुँआ है जिंदगी,धुँआ धुँआ है समां

आँखों में छाई ऐसी नमी खो गया जहां 

 

तुम ही कहो कैसे जिए ये चाक गिरेबा कैसे सीए

रहते है साथ साथ मगर , फासले है दरमियां

 

प्यारा ये चेहरा तेरा,तू धड़कन कि तमन्ना है

बस तुही रहे सामने चाहे छूट जाये ये कारवां

 

बेजान जिस्म, जख्मी रूह और दिल है परेशां

ऐसे में अब इस दिल को सब्र आएगा कहां

 

 कैसे यकीं करू की सनम तुम हो बेवफा

अब ओर न लो तुम मेरे इश्क का इम्तहां

Monday, December 10, 2012

याद किया



आज फिर  इस तरह  तुम्हे याद किया
हमने  अपने आप  खुद को बर्बाद किया

तब मिला मुझको मेरी वफाओं का सिला
प्यार के रिश्ते से जब तुझको आजाद किया

चार दिन की जिंदगी क्या दुश्मनी क्या रंजिशें
हमने दुश्मनों से अपनी दोस्ती को आबाद किया

उसने भी मुजरिम समझा और फेर ली आँखे
हमने तो कई बार उसके दर पर फरियाद किया

Wednesday, December 5, 2012

( गाँव की बोली)

A Village scene

दूर कही गाँव में

पीपल की छांव में

बच्चे खेल रहे है गोली

याद आती है मासूम ठिठोली

खेतों खलिहानो में

गलियों मैदानों में

दौड रही है फगुओ की टोली

याद आती है गांव की होली

तीजो त्योहारों में

गलियों चौबारो में

भाभी बनाती है रंगोली

याद आये दुल्हनियां की डोली

अमवा की डाली में

बेरी की झाडी में

लुक छिप जाते हमजोली

आज सुधि की पिटारी है खोली