धुँआ धुँआ है जिंदगी,धुँआ धुँआ है समां
आँखों में छाई ऐसी नमी खो गया जहां
तुम ही कहो कैसे जिए ये चाक गिरेबा कैसे सीए
रहते है साथ साथ मगर , फासले है दरमियां
प्यारा ये चेहरा तेरा,तू धड़कन कि तमन्ना है
बस तुही रहे सामने चाहे छूट जाये ये कारवां
बेजान जिस्म, जख्मी रूह और दिल है परेशां
ऐसे में अब इस दिल को सब्र आएगा कहां
कैसे यकीं करू की सनम तुम हो बेवफा
अब ओर न लो तुम मेरे इश्क का इम्तहां
बेजान जिस्म, जख्मी रूह और दिल है परेशां
ReplyDeleteऐसे में अब इस दिल को सब्र आएगा कहां
सच कहा ....
दिल की तड़प ....बहुत ही अच्छी ....
ReplyDeleteबेजान जिस्म, जख्मी रूह और दिल है परेशां
ReplyDeleteऐसे में अब इस दिल को सब्र आएगा कहां ...
सच कहा है ... इस तड़प ओर बैचेनी का इलाज समझ नहीं आता ..
२०१३ की मगल कामनाएं ..
मन के क्रन्दन को स्थापित करते शब्द..
ReplyDeleteतुम ही कहो कैसे जिए ये चाक गिरेबा कैसे सीए
ReplyDeleteरहते है साथ साथ मगर , फासले है दरमियां
सारे शेर अच्छे है.
बहुत सुन्दर !
ReplyDelete'दर्द ही दर्द है बिखरा हुआ ...
समेटूँ कहाँ कहाँ ...' :(
~सादर!!!
बेजान जिस्म, जख्मी रूह और दिल है परेशां
ReplyDeleteऐसे में अब इस दिल को सब्र आएगा कहां
wah lajabab sher
दिल से एक आह से निकली है!!
ReplyDeleteबहुत खूब!
बहुत खूब
ReplyDeleteशब्दों में दर्द ही दर्द
वाह क्या बात है शानदार ग़ज़ल
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