Tuesday, June 28, 2011

डूबती कश्ती ने साहिल का इशारा नहीं देखा.




उनके होठो पे तबसुम कोई प्यारा नही देखा
फिर निगाहों ने कोई ख्वाब दोबारा नही देखा

बारहा  महके है गुज़रे हुए मौसम का खयाल  
कफस में फिर कभी गुलज़ार नज़ारा नहीं देखा

शब को रोशन करें ये चाँद  सितारे सारे
करे जो रूह को रोशन वो सितारा नही देखा

तिश्नगी रूह  की मेरी जो बुझाये कोई
अब तलक अब्र कोई ऐसा आवारा नही देखा

यूँ तो जज़्बा भी, हौसला भी  तमन्ना भी थी
डूबती कश्ती ने साहिल का इशारा नहीं देखा. 

Sunday, June 12, 2011



हिज्र की रात ये ढलती नहीं  क्यूँ
खिजां की रुत भी बदलती नहीं  क्यूँ

सहर, कहते हैं अगले मोड़ पर है
मगर ये रात फिर चलती नहीं क्यूँ

ख्वाब टूटे पलक में किरकते हैं
आंख शब भर मेरी लगती नहीं क्यूँ  

अभी देखो तो मिटटी में नमी है
कली दिल की मगर खिलती नहीं क्यूँ  
 
मीन हूँ और दरिया है लबालब
प्यास मेरी भला  बुझती नहीं क्यूँ