हिज्र की रात ये ढलती नहीं क्यूँ
खिजां की रुत भी बदलती नहीं क्यूँ
सहर, कहते हैं अगले मोड़ पर है
मगर ये रात फिर चलती नहीं क्यूँ
ख्वाब टूटे पलक में किरकते हैं
आंख शब भर मेरी लगती नहीं क्यूँ
अभी देखो तो मिटटी में नमी है
कली दिल की मगर खिलती नहीं क्यूँ
मीन हूँ और दरिया है लबालब
प्यास मेरी भला बुझती नहीं क्यूँ
आज उपस्थित सब साधन हैं,
ReplyDeleteसुख से फिर भी क्या अनबन है।
सहर, कहते हैं अगले मोड़ पर है
ReplyDeleteमगर ये रात फिर चलती नहीं क्यूँ...
बहुत ख़ूबसूरत गज़ल..हरेक शेर बहुत उम्दा..
बहुत खूबसुरत रचना| धन्यवाद|
ReplyDeleteबहुत खूब शानदार ग़ज़ल है अनु जी......आखिरी वाला शेर तो कमाल का है.....
ReplyDeleteआपके ग़ज़ल पढ़ी...बहुत सुन्दर लिखा है...लिखते रहिये...
ReplyDeletewow Very Nice
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना ...
ReplyDeleteशानदार ग़ज़ल अनु जी......
ReplyDeleteकुछ व्यक्तिगत कारणों से पिछले 15 दिनों से ब्लॉग से दूर था
ReplyDeleteइसी कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका !
सहर, कहते हैं अगले मोड़ पर है
ReplyDeleteमगर ये रात फिर चलती नहीं क्यूँ
gazal ka ye tukda bahut pasand aaya
or haan aapke blog ke sath sath aapka naam bhi bahut sundar hai ..itni sare khoobsurat or dilkash pahluon par hamari bandhaii or shubhkamnayen ..swikar karen
आप सब का बहुत बहुत आभार.... स्नेह बनाए रखें
ReplyDeleteसहर, कहते हैं अगले मोड़ पर है
ReplyDeleteमगर ये रात फिर चलती नहीं क्यूँ
बेहद खूबसूरत गज़ल ।
"meen hoon aur dariya hai labalab,pyas meri bhala bujhti kiyon nahi" wah! bahut khoob.kis tareh ki majboori ka aehsas karwaya hai aapne.dil khush ho gaya.
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