मेरे जख्मो के जो मिल जाते निशां
तन्हा होती मै न जिंदगी होती वीरां
तेज आंधियों ने जो बुझाये है दिए
उन चरागों से क्यों उठता है धुआँ
तुम गर तोड़ दोगे यूँ आईने मेरे
इन टूटी तस्वीरों को मै देदुंगी जुबाँ
कल रात तेरी याद में रोते ही रहे
संग रोने लगी ये सावन की घटा
ऐसी राहों से भी हम गुजरे है जहा
गमों की धूप थी सर पे था खुला आसमां
आपने ही एहसासों के हाथो हुई जख्मी
मुझको तुमसे तो ना था कोई शिकवा
इन सूनी उदास रातो के दर्द से
कौन जाने हम कब होजाये फ़ना
ना उमीदी को करो न खुद पे सवार
अभी खुशबु ए जिंदगी है और है नया समां
Posted via email from धड़कन