Sunday, September 12, 2010

उन चरागों से क्यों उठता है धुआँ


मेरे जख्मो के जो मिल जाते निशां
तन्हा होती मै न जिंदगी होती वीरां

तेज आंधियों ने जो बुझाये है दिए
उन चरागों से क्यों उठता है धुआँ

तुम गर तोड़ दोगे यूँ आईने मेरे
इन टूटी तस्वीरों को मै देदुंगी जुबाँ

कल रात तेरी याद में रोते ही रहे
संग रोने लगी ये सावन की घटा

ऐसी राहों से भी हम गुजरे है जहा
गमों की धूप थी सर पे था खुला आसमां

आपने ही एहसासों के हाथो हुई जख्मी
मुझको तुमसे तो ना था कोई शिकवा

इन सूनी उदास रातो के दर्द से
कौन जाने हम कब होजाये फ़ना

ना उमीदी को करो न खुद पे सवार
अभी खुशबु ए जिंदगी है और है नया समां







Tuesday, September 7, 2010

दिल कुछ इस तरह जलाये जाते है


दिल के रिश्ते जो आजमाए जाते है
गम जिंदगी के फिर रुलाये जाते है

शमा के साथ परवाना भी जलता है
साथ  क्या  यूँ भी  निभाए  जाते है

टूट कर  बिखरे  अरमानो की तरह
बेसबब  हम  अश्क  बहाए जाते है

बुझती ही नहीं इश्क की आग यारा
दिल कुछ इस तरह जलाये जाते है

दिल रोता ही रहा तेरी बेवफाई पर
हम उल्फत में जख्म खाए जाते है

संगदिल है वो मगर रोयेगा जरूर
दर्द मेरे उसको भी तडपाये जाते है