मेरे जख्मो के जो मिल जाते निशां
तन्हा होती मै न जिंदगी होती वीरां
तेज आंधियों ने जो बुझाये है दिए
उन चरागों से क्यों उठता है धुआँ
तुम गर तोड़ दोगे यूँ आईने मेरे
इन टूटी तस्वीरों को मै देदुंगी जुबाँ
कल रात तेरी याद में रोते ही रहे
संग रोने लगी ये सावन की घटा
ऐसी राहों से भी हम गुजरे है जहा
गमों की धूप थी सर पे था खुला आसमां
आपने ही एहसासों के हाथो हुई जख्मी
मुझको तुमसे तो ना था कोई शिकवा
इन सूनी उदास रातो के दर्द से
कौन जाने हम कब होजाये फ़ना
ना उमीदी को करो न खुद पे सवार
अभी खुशबु ए जिंदगी है और है नया समां
Posted via email from धड़कन
जिन्दगी का हर बचा लम्हा एक नयी शुरुआत का संकेत है।
ReplyDeletebahut sunder prastuti hai.
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 5-10 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
ReplyDeleteकृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
http://charchamanch.blogspot.com/
तेज आंधियों ने जो बुझाये है दिए
ReplyDeleteउन चरागों से क्यों उठता है धुआँ.......
दिल को छूलेने वाली बहुत सुन्दर प्रस्तुति....बधाई...
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन!
ReplyDeleteअपने ही एहसासों से हुए जख्मी ...
ReplyDeleteतुमसे तो नहीं था कोई शिकवा ...
जो जख्म देते हैं , अपने एहसास ही तो होते है ...गैरों से क्या शिकवा ...
बहुत बढ़िया ...!
तेज आँधियाँ-----
ReplyDeleteतुम गर तोड देते----
लाजवाब। बहुत अच्छी लगी नज़म। बधाई।
anu ji aap ne mere blog pr meri rchna ko itna pyar diya phle to ap meri hridy ki gahraiyon ke aabhar ko swikAR kren
ReplyDeleteaap ki sundr rchnaon ke liye
jla kr hath chhale khoob dil ke fod kr apne
unhi ki tees me jina yh meri ibadt hai
/////////
gile shikve rhenge main khan inkar krta hoon
dilon ki dooriyan km hon yh asli kahavt hai
dr.vedvyathit@gmail.com