Sunday, September 12, 2010

उन चरागों से क्यों उठता है धुआँ


मेरे जख्मो के जो मिल जाते निशां
तन्हा होती मै न जिंदगी होती वीरां

तेज आंधियों ने जो बुझाये है दिए
उन चरागों से क्यों उठता है धुआँ

तुम गर तोड़ दोगे यूँ आईने मेरे
इन टूटी तस्वीरों को मै देदुंगी जुबाँ

कल रात तेरी याद में रोते ही रहे
संग रोने लगी ये सावन की घटा

ऐसी राहों से भी हम गुजरे है जहा
गमों की धूप थी सर पे था खुला आसमां

आपने ही एहसासों के हाथो हुई जख्मी
मुझको तुमसे तो ना था कोई शिकवा

इन सूनी उदास रातो के दर्द से
कौन जाने हम कब होजाये फ़ना

ना उमीदी को करो न खुद पे सवार
अभी खुशबु ए जिंदगी है और है नया समां







10 comments:

  1. जिन्दगी का हर बचा लम्हा एक नयी शुरुआत का संकेत है।

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  2. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 5-10 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
    कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  3. तेज आंधियों ने जो बुझाये है दिए
    उन चरागों से क्यों उठता है धुआँ.......

    दिल को छूलेने वाली बहुत सुन्दर प्रस्तुति....बधाई...

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  4. This comment has been removed by the author.

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  5. बहुत बेहतरीन!

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  6. अपने ही एहसासों से हुए जख्मी ...
    तुमसे तो नहीं था कोई शिकवा ...
    जो जख्म देते हैं , अपने एहसास ही तो होते है ...गैरों से क्या शिकवा ...
    बहुत बढ़िया ...!

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  7. तेज आँधियाँ-----
    तुम गर तोड देते----
    लाजवाब। बहुत अच्छी लगी नज़म। बधाई।

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  8. anu ji aap ne mere blog pr meri rchna ko itna pyar diya phle to ap meri hridy ki gahraiyon ke aabhar ko swikAR kren
    aap ki sundr rchnaon ke liye
    jla kr hath chhale khoob dil ke fod kr apne
    unhi ki tees me jina yh meri ibadt hai
    /////////
    gile shikve rhenge main khan inkar krta hoon
    dilon ki dooriyan km hon yh asli kahavt hai
    dr.vedvyathit@gmail.com

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