Wednesday, March 31, 2010

सुहानी स्याह रातो में मोहोब्बत नूर बनती है

सुहानी स्याह रातो में मोहोब्बत नूर बनती है
हमारे दिल के आईने में तब दुनिया संवरती है

वफा के फूल मेरी जिंदगी में मुस्कुराए थे
उन्हीं की याद में अब तक मेरी हस्ती महकती है

कभी तो बादलों की छाँव में हसरत मचलती है
कभी तनहाइयों की आग में ख्वाहिश पिघलती है

खिज़ा की रात में तारों की झालर झिलमिलाती है
किसी की याद बन कर चांदनी छत पर सिसकती है

कभी लगता है दिल फट के निकल जाएगा पहलू से
जो अफसाना मोहोब्बत का गमे तन्हाई ’लिखती है
(26/2/2010-अनु)

Posted via email from धड़कन

3 comments:

  1. सुहानी स्याह रातो में मोहोब्बत नूर बनती है
    हमारे दिल के आईने में तब दुनिया संवरती है

    वफा के फूल मेरी जिंदगी में मुस्कुराए थे
    उन्हीं की याद में अब तक मेरी हस्ती महकती है



    बहरे हजज मुसमन सालिम की बढ़िया गजल कही आपने
    पढ़ कर दिल खुश हो गया

    आपके ब्लॉग पर आ कर अच्छा लगा और आप भी इलाहाबाद से हैं ये जान कर और भी अच्छा लगा :)

    आप लिखती रहे हम पढते रहें

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  2. फुर्सत मिले तो आपकी पुराणी पोस्ट भी पढ़ी जाये

    कमेन्ट से ये वार्ड वैरीफिकेशन हटा दीजिए बहुत दिक्कत होती है

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