Sunday, March 28, 2010

इश्क दरिया है लोगो को डुबाता ही रहा


बहुत दरिया दिल था वो शख्स

छीन कर आँख वो चराग दिखता ही रहा

दर्दे दिल आँख से बह कर निकले
हाल पे मेरे वो चुपचाप मुस्कुराता ही रहा

दिखाया जब भी उसको जख्मे जिगर
नोक से काँटों की मरहम वो लगता ही रहा

बह गई मै भी तेरी चाहत में 'अनु'
इश्क दरिया है लोगो को डुबाता ही रहा
(14/2/2010-अनु )

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना । आभार
    ढेर सारी शुभकामनायें.

    ReplyDelete
  2. इश्क दरिया है लोगो को डुबाता ही रहा
    बहुत सुन्दर रचना।

    ReplyDelete

यूँ चुप न रहिये ... कुछ तो कहिये