Thursday, September 15, 2011

क्या मजा मिलता है तुझको मिट जाने में


कल दिया था दिल हमे किसी दीवाने ने
बेहोश बेदिल फिरते रहे हम अनजाने में

हाले दिल सुनाने से रहगया मेरा दिलदार
बाद मुद्दत के वो आया इस गरीबखाने में

नींद की कश्ती हमे सकूंने सहर तक ले गई
डूब गए होते रात हम गम के मयखाने में

नजर मिला कर जो नजर से देदिया साकी
कुर्बान लाखो जाम तेरे इस एक पैमाने पे

शमा हर रात पूछती है बैखोफ परवाने से
क्या मजा मिलता है तुझको मिट जाने में

क्या शिकवा किसी से है अपना अपना नसीब
कोई है मयखाने के बाहर है कोई मयखाने में

तेरी महफिल मेरी गजलों का जिक्र क्यों हो
हमको तो शायर भी बनाया है तेरे अफसाने ने
                                     (अनु -)

17 comments:

  1. शमा हर रात पूछती है बैखोफ परवाने से
    क्या मजा मिलता है तुझको मिट जाने में
    बड़े दिनों की अधीर प्रतीक्षा के बाद आज आपका आगमन हुआ है
    बेहतरीन शब्द संचयन...........बधाई

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  2. नजर मिला कर जो नजर से देदिया साकी
    कुर्बान लाखो जाम तेरे इस एक पैमाने पे

    वाह!...बहुत बढ़िया।

    सादर

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  3. क्या बात है ,वाह वाह ..बहुत खूब.

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  4. क्या शिकवा किसी से है अपना अपना नसीब
    कोई है मयखाने के बाहर है कोई मयखाने में

    ....बहुत ख़ूबसूरत गज़ल...हरेक शेर दिल को छू जाता है...

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  5. वाह.. गहन अभिव्यक्ति।

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  6. नींद की कश्ती हमे सकूंने सहर तक ले गई
    डूब गए होते रात हम गम के मयखाने

    वाह क्या गज़ल है

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  7. bhabhi kuch kahane jaise shabd nhi hai mere pass ,par haa jo bhi is gazal mein hai ,wo hai badaa kamal

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  8. bahut khub...waha

    नींद की कश्ती हमे सकूंने सहर तक ले गई
    डूब गए होते रात हम गम के मयखाने में

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  9. नींद की कश्ती हमे सकूंने सहर तक ले गई
    डूब गए होते रात हम गम के मयखाने में...बहुत ख़ूबसूरत गज़ल...

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  10. सौन्दर्यपूर्ण रचना !!
    क्या मजा मिलता है तुझको मिट जाने में...

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  11. वाह........वाह.........दाद कबूल करे.........खूबसूरत ग़ज़ल|

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  12. क्या शिकवा किसी से है अपना अपना नसीब
    कोई है मयखाने के बाहर है कोई मयखाने में

    बिलकुल सही कहा!
    उम्दा ग़ज़ल!

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  13. बहुत ख़ूबसूरत गज़ल..वाह,वाह.......

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  14. तेरी महफिल मेरी गजलों का जिक्र क्यों न हो
    हमको तो शायर भी बनाया है तेरे अफसाने ने

    क्या बात है ,वाह

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