कल दिया था
दिल हमे किसी दीवाने ने
बेहोश बेदिल फिरते रहे हम
अनजाने में
हाले दिल सुनाने से
रहगया मेरा दिलदार
बाद मुद्दत के
वो आया इस
गरीबखाने में
नींद की
कश्ती हमे सकूंने सहर तक
ले गई
डूब गए
होते रात हम
गम के
मयखाने में
नजर मिला कर
जो नजर से
देदिया साकी
कुर्बान लाखो जाम तेरे इस
एक पैमाने पे
शमा हर
रात पूछती है
बैखोफ परवाने से
क्या मजा मिलता है
तुझको मिट जाने में
क्या शिकवा किसी से
है अपना अपना नसीब
कोई है
मयखाने के
बाहर है
कोई मयखाने में
तेरी महफिल मेरी गजलों का
जिक्र क्यों न
हो
हमको तो शायर भी
बनाया है
तेरे अफसाने ने
(अनु
-)
शमा हर रात पूछती है बैखोफ परवाने से
ReplyDeleteक्या मजा मिलता है तुझको मिट जाने में
बड़े दिनों की अधीर प्रतीक्षा के बाद आज आपका आगमन हुआ है
बेहतरीन शब्द संचयन...........बधाई
नजर मिला कर जो नजर से देदिया साकी
ReplyDeleteकुर्बान लाखो जाम तेरे इस एक पैमाने पे
वाह!...बहुत बढ़िया।
सादर
क्या बात है ,वाह वाह ..बहुत खूब.
ReplyDeleteक्या शिकवा किसी से है अपना अपना नसीब
ReplyDeleteकोई है मयखाने के बाहर है कोई मयखाने में
....बहुत ख़ूबसूरत गज़ल...हरेक शेर दिल को छू जाता है...
वाह.. गहन अभिव्यक्ति।
ReplyDeletebahut khub! :)
ReplyDeletewaah kya baat hai umda gazel.
ReplyDeleteनींद की कश्ती हमे सकूंने सहर तक ले गई
ReplyDeleteडूब गए होते रात हम गम के मयखाने
वाह क्या गज़ल है
bhabhi kuch kahane jaise shabd nhi hai mere pass ,par haa jo bhi is gazal mein hai ,wo hai badaa kamal
ReplyDeletebahut khub...waha
ReplyDeleteनींद की कश्ती हमे सकूंने सहर तक ले गई
डूब गए होते रात हम गम के मयखाने में
नींद की कश्ती हमे सकूंने सहर तक ले गई
ReplyDeleteडूब गए होते रात हम गम के मयखाने में...बहुत ख़ूबसूरत गज़ल...
सौन्दर्यपूर्ण रचना !!
ReplyDeleteक्या मजा मिलता है तुझको मिट जाने में...
वाह........वाह.........दाद कबूल करे.........खूबसूरत ग़ज़ल|
ReplyDeleteक्या शिकवा किसी से है अपना अपना नसीब
ReplyDeleteकोई है मयखाने के बाहर है कोई मयखाने में
बिलकुल सही कहा!
उम्दा ग़ज़ल!
बहुत ख़ूबसूरत गज़ल..वाह,वाह.......
ReplyDeleteतेरी महफिल मेरी गजलों का जिक्र क्यों न हो
ReplyDeleteहमको तो शायर भी बनाया है तेरे अफसाने ने
क्या बात है ,वाह
बहुत खूब ...
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