Saturday, December 18, 2010

दर्द है दिल में और दिल परेशान है



दर्द है दिल में और दिल परेशान है
बस यही दर्द अब मेरी पहचान है

हम तेरी  आरजू में  फना होगये
मेरी चाहत से बस तू ही अनजान है

अपना जीना फकत एक एहसास है
जिस्म में  जिंदगी जैसे मेहमान है

हँसती रहती हूँ दिल को भी बहलाती हूँ
पर लबो की  हँसी भी तो  बेजान है

तुझ को चाहा मेरी बस यही है खता
क्या करूं क्या करूं  इश्क नादान है

मिल गई दिल लगाने कि हमको सजा
फिर इस बात से दिल क्यों हैरान है

हर सु फैली हुई है ये कैसी घुटन
बस इक ताजी हवा का ही अरमान है 

हर पल बिकता यहाँ ईमान है
कैसी दुनिया है ये कैसा इंसान है  
                             

7 comments:

  1. अपना जीना फकत एक एहसास है
    जिस्म में जिंदगी जैसे मेहमान है

    कोमल अहसासों से परिपूर्ण बहुत सुन्दर गज़ल..हरेक शेर दिल को छू लेता है

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  2. हर शेर लाजवाब और बेमिसाल ..

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  3. बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......

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  4. चुन चुन कर पगे हैं भाव और शब्द।

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  5. बहुत ही सुन्दर रचना है।

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  6. अनु जी,

    वाह....बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल.....ये शेर बहुत अच्छे लगे ......

    "अपना जीना फकत एक एहसास है
    जिस्म में जिंदगी जैसे मेहमान है

    हर सु फैली हुई है ये कैसी घुटन
    बस इक ताजी हवा का ही अरमान है

    हर पल बिकता यहाँ ईमान है
    कैसी दुनिया है ये कैसा इंसान है"

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  7. जमीं पे बिखरी रेत को ,
    आसमां की चाहत हो गई !
    उसे पाने की आरज़ू जो की ,
    तकदीर को हमसे शिकायत हो गई !

    बहुत खूब लिखा है दोस्त बधाई !

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