सहराए जीस्त में गुलदान सजा रखा है
प्यार का दिया हवाओ में जला रखा है
रोज़ ख़्वाबों में गिला करता है वफाओं की
एक मुद्दत से हमें जिसने भुला रखा है
जाने वाले पलट के अलविदा तो कह जाते
दिल को उम्मीद के साये में बिठा रखा है
याद करते ही उन्हें डबडबा गयी आंखे
जाने हमने भी ये क्या रोग लगा रखा है
फूल का खुशबू से नाता सदा नहीं रहता
प्यार के लिए जुदाई का सिला रखा है
(अनु २६/१२/२०१०)
प्यार का दिया हवाओ में जला रखा है
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत पंक्तियाँ।
अनु जी,
ReplyDeleteवाह....बहुत खुबसूरत ग़ज़ल....दाद कबूल करें|
रोज़ ख़्वाबों में गिला करता है वफाओं की
ReplyDeleteएक मुद्दत से हमें जिसने भुला रखा है
बहुत सुन्दर गज़ल. लाज़वाब पंक्तियाँ.
behad khoobsurat gazal.
ReplyDeleteshamsheer bahut dhardar ho gayi hai.
फूल खिल कर उदास है !
ReplyDeleteसमंदर को पानी की तलाश है !
एक बार खुल कर मुस्कुराओ तो ये दोस्त !
हमे आपके चेहरे मै मुस्कराहट की तलाश है !!
बेहद भावुक अंदाज में नाज़ुक अभिव्यक्ति. अच्छी गज़ल. आभार. नए वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं .
ReplyDeleteआनंद! आनंद! आनंद!
ReplyDeleteआशीष
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हमहूँ छोड़के सारी दुनिया पागल!!!
याद करते ही उन्हें डबडबा गयी आंखे
ReplyDeleteजाने हमने भी ये क्या रोग लगा रखा है
आह ! खूब पंक्तियाँ लिखी हैं आपने. तस्वीर से भी सुन्दर अभिव्यक्ति दी है शब्दों को.
याद करते ही उन्हें डबडबा गयी आंखे
ReplyDeleteजाने हमने भी ये क्या रोग लगा रखा है
दिल की गहराईयों से कही गयी
बहुत असरदार रचना .... !!
आदरणीया अनीता सिंह जी 'अनु'
ReplyDeleteनमस्कार !
बहुत प्यारी रचना है -
जाने वाले पलट के अलविदा तो कह जाते
दिल को उम्मीद के साये में बिठा रखा है
याद करते ही उन्हें डबडबा गयी आंखे
जाने हमने भी ये क्या रोग लगा रखा है
अच्छे अश्आर लिखे हैं … बधाई !
आपकी अन्य रचनाएं भी प्रभावित करती हैं ।
~*~नव वर्ष २०११ के लिए हार्दिक मंगलकामनाएं !~*~
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
simply beautyful...
ReplyDeleteयाद करते ही उन्हें डबडबा गयी आंखे
जाने हमने भी ये क्या रोग लगा रखा है...wah jee wah