Sunday, December 26, 2010

प्यार का दिया हवाओ में जला रखा है




सहराए जीस्त में गुलदान सजा रखा है
प्यार का दिया हवाओ में जला रखा है

रोज़ ख़्वाबों में गिला करता है वफाओं की
एक मुद्दत से हमें जिसने भुला रखा है

जाने वाले पलट के अलविदा तो कह जाते
दिल को उम्मीद के साये में बिठा रखा है

याद करते ही उन्हें डबडबा गयी आंखे
जाने हमने भी ये क्या रोग लगा रखा है

फूल का खुशबू से नाता सदा नहीं रहता
प्यार के लिए जुदाई का सिला रखा है
(अनु २६/१२/२०१०)

11 comments:

  1. प्यार का दिया हवाओ में जला रखा है

    बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ।

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  2. अनु जी,

    वाह....बहुत खुबसूरत ग़ज़ल....दाद कबूल करें|

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  3. रोज़ ख़्वाबों में गिला करता है वफाओं की
    एक मुद्दत से हमें जिसने भुला रखा है

    बहुत सुन्दर गज़ल. लाज़वाब पंक्तियाँ.

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  4. फूल खिल कर उदास है !
    समंदर को पानी की तलाश है !
    एक बार खुल कर मुस्कुराओ तो ये दोस्त !
    हमे आपके चेहरे मै मुस्कराहट की तलाश है !!

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  5. बेहद भावुक अंदाज में नाज़ुक अभिव्यक्ति. अच्छी गज़ल. आभार. नए वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं .

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  6. आनंद! आनंद! आनंद!
    आशीष
    ---
    हमहूँ छोड़के सारी दुनिया पागल!!!

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  7. याद करते ही उन्हें डबडबा गयी आंखे
    जाने हमने भी ये क्या रोग लगा रखा है

    आह ! खूब पंक्तियाँ लिखी हैं आपने. तस्वीर से भी सुन्दर अभिव्यक्ति दी है शब्दों को.

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  8. याद करते ही उन्हें डबडबा गयी आंखे
    जाने हमने भी ये क्या रोग लगा रखा है

    दिल की गहराईयों से कही गयी
    बहुत असरदार रचना .... !!

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  9. आदरणीया अनीता सिंह जी 'अनु'
    नमस्कार !

    बहुत प्यारी रचना है -

    जाने वाले पलट के अलविदा तो कह जाते
    दिल को उम्मीद के साये में बिठा रखा है

    याद करते ही उन्हें डबडबा गयी आंखे
    जाने हमने भी ये क्या रोग लगा रखा है

    अच्छे अश्आर लिखे हैं … बधाई !

    आपकी अन्य रचनाएं भी प्रभावित करती हैं ।

    ~*~नव वर्ष २०११ के लिए हार्दिक मंगलकामनाएं !~*~

    शुभकामनाओं सहित
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  10. simply beautyful...

    याद करते ही उन्हें डबडबा गयी आंखे
    जाने हमने भी ये क्या रोग लगा रखा है...wah jee wah

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