दर्दे दिल न था चाहत की कली खिली न थी
वो भी क्या दिन थे जब तुझसे मिली न थी
ये क्या हुआ मुझको पहले तो ऐसी न थी लगता है की वो भी शर्मसार है खुद से
उसकी जफ़ा मेरी वफा से गहरी न थी वक्त ही रहा होगा मेरा दुश्मने तकदीर
वरना किसी की बदुआ में वो तासीर न थी एक तुमको ही न बना सके अपना
और तो जिंदगी में कोई कमी न थी
Posted via email from धड़कन
वक्त ही रहा होगा मेरा दुश्मने तकदीर वरना किसी की बदुआ में वो तासीर न थी|
ReplyDeletedil se likh agaya sher muvarakvad
बहुत बढ़िया!
ReplyDeleteखूबसूरती से एहसासों को बयां किया है..
ReplyDeleteवक्त ही रहा होगा मेरा दुश्मने तकदीर
ReplyDeleteवरना किसी की बदुआ में वो तासीर न थी |
वाह वाह.
उतर गया दिल में.
क्या भौजी ! आपका लेख पढ़कर हम और अन्य ब्लॉगर्स बार-बार तारीफ़ करना चाहेंगे पर ये वर्ड वेरिफिकेशन (Word Verification) बीच में दीवार बन जाता है.
ReplyDeleteआप यदि इसे कृपा करके हटा दें, तो हमारे लिए आपकी तारीफ़ करना आसान हो जायेगा.
इसके लिए आप अपने ब्लॉग के डैशबोर्ड (dashboard) में जाएँ, फ़िर settings, फ़िर comments, फ़िर { Show word verification for comments? } नीचे से तीसरा प्रश्न है ,
उसमें 'yes' पर tick है, उसे आप 'no' कर दें और नीचे का लाल बटन 'save settings' क्लिक कर दें. बस काम हो गया.
आप भी न, एकदम्मे स्मार्ट हो.
और भी खेल-तमाशे सीखें सिर्फ़ "टेक टब" (Tek Tub) पर.
यदि फ़िर भी कोई समस्या हो तो यह लेख देखें -
वर्ड वेरिफिकेशन क्या है और कैसे हटायें ?
पढ़ाकर भावुक कर दिया ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!
ReplyDeleteवक्त ही रहा होगा मेरा दुश्मने तकदीर
ReplyDeleteवरना किसी की बदुआ में वो तासीर न थी |
क्या बात है ...
आपके लफ्ज़ बयाँ होते हैं ऐसे
दिल निकाल कर रख दिया हो जैसे ...