Thursday, December 15, 2016

जिंदगी

जिंदगी मेरी अब सजा हो गई
मौत भी मुझसे बेवफा हो गई
पैगाम अब तक न उनका आया कोई 
जाने हमसे क्या खता हो गई
रंजो गम फैला है इन हवाओं में
क्यूँ हमसे खफा ये सबा हो गई
खामोश बैठे है महफ़िल में इस तरह 
शामे मेरी भी अब बेसदा हो गई
भटकते कदमों की आरही है सदा
उनकी आवारगी की इन्तिहाँ हो गई

1 comment:

  1. क्या बात जी ... बहुत लाजवाब शेर प्रेम के की रंग लिए हैं शेर ...

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