Friday, February 26, 2010

बिजलियाँ हम पे गिराने कि जरूरत क्या थी

बे सबब अश्क बहाने की जरूरत क्या थी
दर्दे दिल सबको दिखाने की जरूरत क्या थी

हम तो खुद हार गए आपकी मोहोब्बत में
जीत का जश्न मनाने की जरूरत क्या थी

गर शिकारी थे तो करते शिकार कोई नया
किसी घायल पर निशाने की जरूरत क्या थी

इतने नाजुक हैं कि सांसो से पिघल जाते है
बिजलियाँ हम पे गिराने कि जरूरत क्या थी
(24/2/2010अनु)

Posted via email from धड़कन

1 comment:

यूँ चुप न रहिये ... कुछ तो कहिये