Tuesday, March 2, 2010

हमपे करम बहुत हैं उस सितमगार के

ऐ मेरे सनम तेरी महोब्बत में हार के
यूँ ही चले जाएगे शबे गम गुजार के

है मयकदा वीरान और सागर उदास है
जाने से उनके रूठ गए दिन बहार के

हम टूट भले जाएँगे शिकवा न करेंगे
हमपे करम बहुत हैं उस सितमगार के

ख्वाबो के ही आलम में आजाये वो कभी
पलकों में पालती रही दिन इंतजार के

फिर तोड़ के दीवार अना की पुकार लो
फिर देख लूँ मै हौसले अपने भी यार के

(26/2/2010-अनु)

Posted via email from धड़कन

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