फांस ये दिल से निकल जाए तो अच्छा होता
जिंदगी फिर से गुनगुनाये तो अच्छा होता
अब तो तनहाइयों की धूप से जलता है बदन
प्यार की छांव जो मिल जाए तो अच्छा होता
तमाम शब गुजर गई ग़मों की दरिया में
तीर कश्ती को जो मिल जाए तो अच्छा होता
कोई तो हो भी मेरी नीद की साजिश में शरीक
मेरे खवाबो की ताबीर बदल जाए तो अच्छा होता
(21/2/2010-अनु)
Posted via email from धड़कन
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