Friday, March 5, 2010

जिंदगी फिर से गुनगुनाये तो अच्छा होता

फांस ये दिल से निकल जाए तो अच्छा होता

जिंदगी फिर से गुनगुनाये तो अच्छा होता


 

अब तो तनहाइयों की धूप से जलता है बदन

प्यार की छांव जो मिल जाए तो अच्छा होता


 

तमाम शब गुजर गई ग़मों की दरिया में  

तीर कश्ती को जो मिल जाए तो अच्छा होता 


 

कोई तो हो भी मेरी नीद की साजिश में शरीक

मेरे खवाबो की ताबीर बदल जाए तो अच्छा होता

 

                                                               (21/2/2010-अनु)

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