तुम ही थे मेरे इश्क से अनजान बहुत
वरना इस दिल में थे अरमान बहुत
ज़ब्त ए गम आँख को पत्थर कर दे
अश्क मुझे करते हैं परेशान बहुत
फिर से बह निकली मुहब्बत की हवा
पर वहाँ जज़्ब हैं तूफ़ान बहुत
जी तो लेती ‘अनु’तेरे बगैर मगर
जिंदगी होती नहीं है आसान बहुत
(10/2/2010- अनु)
Posted via email from धड़कन
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
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