ये बात सपन सी लगती है
जब हम भी खुश खुश रहते थे
थे पास हमारे तब भी वो
जब ख्वाब सुनहरे सजते थे
मन खोया खोया रहता था
अरमा बेख़ौफ़ मचलते थे
है पास हमारे अब भी वो
पर तन्हा तन्हा रहते है
मन अब भी खोया रहता है
पर अरमाँ नहीं मचलते है
हम किसको ढूंढा करते है
और क्या हम ढूंढा करते है
दुनिया भर के इस मेले में
क्यों तन्हा घूमा करते है
है पास हमारे अब भी वो
(3/2/2010----अनु )
Posted via email from धड़कन
ANITA JI GAJAB KA LIKHTI HAI AAP
ReplyDeleteAchhee kavita hai,Anu.
ReplyDeleteseedha dil se kahi gayee .
Aur chitr chayan bhi bahut pasand aaya.
Shubhakmanyen
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteकभी हम भी तन्हा थे
ReplyDeleteपर अब शब्दों का साथ मिला तो ऐसा लगा सारा जहान अपना है
नज़रों से मिली नजरे तो नज़रों में बसी सूरत
ReplyDeleteकाश हमको उस खुदाई के नज़ारे भी दिए होते
अपना हमसफ़र जाना ,इबादत भी करी जिनकी
चलतें दो कदम संग में ,सहारे भी दिए होते
जीने का नजरिया फिर अपना कुछ अलग होता
गर अपनी जिंदगी के गम ,सारे दे दिए होते
दिल को भी जला लेते और ख्बाबों को जलाते हम
गर मुहब्बत में अँधेरे के इशारे जो किये होते
बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!शुभकामनायें.
आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
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