Saturday, March 20, 2010

मन अब भी खोया रहता है


ये बात सपन सी लगती है
जब हम भी खुश खुश रहते थे
थे पास हमारे तब भी वो
जब ख्वाब सुनहरे सजते थे
मन खोया खोया रहता था
अरमा बेख़ौफ़ मचलते थे
है पास हमारे अब भी वो
पर तन्हा तन्हा रहते है
मन अब भी खोया रहता है
पर अरमाँ नहीं मचलते है
हम किसको ढूंढा करते है
और क्या हम ढूंढा करते है
दुनिया भर के इस मेले में
क्यों तन्हा घूमा करते है
है पास हमारे अब भी वो
(3/2/2010----अनु )

5 comments:

  1. Achhee kavita hai,Anu.
    seedha dil se kahi gayee .
    Aur chitr chayan bhi bahut pasand aaya.

    Shubhakmanyen

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  3. कभी हम भी तन्हा थे

    पर अब शब्दों का साथ मिला तो ऐसा लगा सारा जहान अपना है

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  4. नज़रों से मिली नजरे तो नज़रों में बसी सूरत
    काश हमको उस खुदाई के नज़ारे भी दिए होते

    अपना हमसफ़र जाना ,इबादत भी करी जिनकी
    चलतें दो कदम संग में ,सहारे भी दिए होते

    जीने का नजरिया फिर अपना कुछ अलग होता
    गर अपनी जिंदगी के गम ,सारे दे दिए होते

    दिल को भी जला लेते और ख्बाबों को जलाते हम
    गर मुहब्बत में अँधेरे के इशारे जो किये होते
    बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!शुभकामनायें.
    आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
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