Monday, March 22, 2010

जीत क्या शय है हार कर देखो

अपनी हस्ती उजाड कर देखो

गलती ये एक बार कर देखो

 

प्यार के खेल में मेरे दिलबर    

जीत क्या शय है हार कर देखो                              

 

हमने एक उम्र काट दी जैसे

तुम एक शब् गुजार कर देखो

 

लौट आउंगी फिर से पास  तेरे

दिल से मुझको पुकार कर देखो

 

फिर बुरा नज़र न आएगा कोई  

खुद का चेहरा निखार कर देखो

                            (10/2/2010-अनु )

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1 comment:

  1. ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है

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