Thursday, August 12, 2010

चाँद तेरी याद के अभी तो ढले ही नहीं





माना की आँख में नींद के सिलसिले नहीं
शिकस्त खवाब के मुझमे अब हौसले नहीं

ये खबर मेरे दुश्मनों ने दी होगी तुमको
वो आये आके चलेगये और मिले भी नहीं

कौन है वो जो करता है अधेरो की बात 
चाँद तेरी याद के अभी तो ढले ही नहीं

अभी से हाथ तेरे थकने लगे है दिलदार
अभी तो जख्म जिगर के मेरे सिले ही नहीं

ना दबाव चाहत को की दिल में ही रह जाए
गुल तो अपनी मोहोब्बत के अभी खिले ही नहीं

7 comments:

  1. काफी सुन्दर शब्दों का प्रयोग किया है आपने अपनी कविताओ में सुन्दर अति सुन्दर

    ReplyDelete
  2. मेरि तरफ से मुबारकबादी क़ुबूल किजिये.

    ReplyDelete
  3. ये पहले भी पढ कर आयी हूँ बहुत अच्छी लगी। बधाई

    ReplyDelete
  4. बड़ी सुन्दर पंक्तियाँ।

    ReplyDelete
  5. ये खबर मेरे दुश्मनों ने दी होगी तुमको
    वो आये आके चलेगये और मिले भी नहीं

    कौन है वो जो करता है अधेरो की बात
    चाँद तेरी याद के अभी तो ढले ही नहीं

    यूँ तो पूरी गजल ही बड़ी प्यारी है ,पर ये दो शे'र बहुत खूब कहे हैं.
    इंतज़ार है,प्यार है,उदासी और निराशा नही.बस इसलिए और दिल को छू गई.
    एइ! सचमुच छू गई. ये वो 'कमेंट्स वाला' छू जाना नही है
    गीत हो. गजल हो पर....उनमे जिंदगी के गीत हो.बस इतनी प्रार्थना है तुमसे

    ReplyDelete

यूँ चुप न रहिये ... कुछ तो कहिये