उसने देखा न कभी एक नजर शाम के बाद
कितने चुपचाप से लगते है शजर शाम के बाद
गर जानना हो हाले दिल मेरा ऐ सनम
देखना चाँद के दर्पण में मुझे शाम के बाद
इतने चुप की रास्ते को भी नहीं याद होगा
छोड देगे किसी रोज ये नगर शाम के बाद
शाम से पहले मस्त परिंदे अपनी उड़ानों में
छुप जाते है इन धोसलो में वो शाम के बाद
तुमने सूरज कभी देखा नहीं इस रात का दर्द
कितने बेरंग से लगते हैं शहर शाम के बाद
लौट के आएगा वो जरूर किसी रोज ‘अनु’
आस पर खोल के रखते है दर शाम के बाद
Posted via email from धड़कन
हर सुबह, हर दोपहर एक हसरत जीती रही,
ReplyDeleteनजर आप आती जी भर, शाम के बाद।
तुमने सूरज कभी देखा नहीं इस रात का दर्द
ReplyDeleteकितने बेरंग से लगते हैं शहर शाम के बाद
kya likh diya !!!!!!! dil bhar gaya
bahut achchha aur bahut hee achchha likha hai
सुंदर रचना । बधाई
ReplyDeletemeri najaron se dekhana khud ko
ReplyDeletekitani khubsurat hai shahar sham ke bad
बहुत बढ़िया ....
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