दिल की तासीर बड़ी अजब सी पाई मैंने
स्याह जुल्फों से शब् ए बज्म सजाई मैंने
आइये पलकों की कालीन बिछाई मैंने
रंग-चाहत, पैरहन-वफ़ा, तड़प की सीरत
दिल की तासीर बड़ी अजब सी पाई मैंने
शब् खयालात में जलते रहे एहसास कई
सुबहो तक शम्मा तलक भी न जलाई मैंने
पुर सुकूं नैन, खम ए ज़ुल्फ़, महकती आगोश
उलझ के इनमे जिंदगी सुलझाई मैंने
शब् खयालात में जलते रहे एहसास कई
ReplyDeleteसुबहो तक शम्मा तलक भी न जलाई मैंने
पुर सुकूं नैन, खम ए ज़ुल्फ़, महकती आगोश
उलझ के इनमे जिंदगी सुलझाई मैंने
खूबसूरत अश'आर .... बहुत खूब
कभी कभी उलझन बढ़ती ही है सुलझने के लिये।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर क़लाम! इतनी परिपक्वता भरी शायरी की अभी उम्मीद न थी, इसलिए और भी अच्छा लग रहा है। ज़रूर लिखती रहिए। बहुत बढ़िया - बहुत अच्छे!
ReplyDelete"माफ़ी"--बहुत दिनों से आपकी पोस्ट न पढ पाने के लिए ...
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया कविता पड़ने को मिली.... गजब का लिखा है
पुर सुकूं नैन, खम ए ज़ुल्फ़, महकती आगोश
ReplyDeleteउलझ के इनमे जिंदगी सुलझाई मैंने
,,,,,बहुत खुब.