Monday, February 7, 2011

कतरा कतरा इल्तिजा करे तो क्या मिले








कतरा कतरा इल्तिजा करे तो क्या मिले
न अश्के दरिया मिले और न उरूजे वफ़ा मिले

है जिंदगी कि दौड में शामिल हर एक शख्स
हर कोई चाहता है उसे रास्ता मिले

हमको न पढा कीजिये औरों की नजर से
चेहरा न पढ़ सके तो किताबो में क्या मिले

हर बार रिश्तों को समझने कि आरजू में
जो भी मिले सनम वो हमे बेवफा मिले

लगता है नए दौर ए रिवाजों में ये लाजिम
जिसकी खता नहीं हो उसीको सजा मिले

3 comments:

  1. बहुत अच्छा लिखा हैं आपने

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  2. वाह !! बहुत खुबसूरत शानदार गज़ल ||

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  3. वाह क्या खूब ग़ज़ल है !!

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