कतरा कतरा इल्तिजा करे तो क्या मिले
न अश्के दरिया मिले और न उरूजे वफ़ा मिले
है जिंदगी कि दौड में शामिल हर एक शख्स
हर कोई चाहता है उसे रास्ता मिले
हमको न पढा कीजिये औरों की नजर से
चेहरा न पढ़ सके तो किताबो में क्या मिले
हर बार रिश्तों को समझने कि आरजू में
जो भी मिले सनम वो हमे बेवफा मिले
लगता है नए दौर ए रिवाजों में ये लाजिम
जिसकी खता नहीं हो उसीको सजा मिले
बहुत अच्छा लिखा हैं आपने
ReplyDeleteवाह !! बहुत खुबसूरत शानदार गज़ल ||
ReplyDeleteवाह क्या खूब ग़ज़ल है !!
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