Friday, February 11, 2011

पलकों में पालती रही दिन इंतजार के






ऐ मेरे सनम तेरी महोब्बत में हार के 
यूँ ही चले जाएगे शबे गम गुजार के


है मयकदा वीरान और सागर उदास है 
जाने से उनके रूठ गए दिन बहार के


हम टूट भले जाएँगे शिकवा न करेंगे 
हमपे करम बहुत हैं उस सितमगार के


ख्वाबो के ही आलम में आजाये वो कभी 
पलकों में पालती रही दिन इंतजार के


फिर तोड़ के दीवार अना की पुकार लो 
फिर देख लूँ मै हौसले अपने भी यार के

5 comments:

  1. अनु जी,

    बहुत खुबसूरत ग़ज़ल.....प्यार के अहसास को समेटे हुए.....बहुत खूब|

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  2. अनीता जी,

    बहुत खुबसूरत ग़ज़ल....
    आभार !!

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  3. आदरणीय अनीता जी,
    नमस्कार !
    ........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती

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  4. है मयकदा वीरान और सागर उदास है
    जाने से उनके रूठ गए दिन बहार के
    khubsurat ahsas, achha sher mubarak ho

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