रोज जीते है यूँ रोज मरते है
हाले दिल उनसे कहते डरते है
हम तो सूखे हुए पत्ते की तरह
रोज ही टूट कर बिखरते है
उनको कब है ख्याल अपना
एक हम ही उनका दम भरते है
रोज आते है ठहरते है चले जाते है
काफिले यादों के पलको में उतरते है
हम तो सूखे हुए पत्ते की तरह रोज ही टूट कर बिखरते है बहुत खूब
गहरी अभिव्यक्ति भावों की।
बहुत खूब ... जिंदगी के कुछ लम्हे उदासी में घिर जाते हैं ... उन्ह को याद कर के लिखी रचना ...
bahut khubsurat
hmmmmm....दिगंबर जी की बात से सहमत हैं अपन.....
उनको कब है ख्याल अपनाएक हम ही उनका दम भरते हैbeautiful......mauka mile to aap idhar bhi padharen...http://bhukjonhi.blogspot.in/
यूँ चुप न रहिये ... कुछ तो कहिये
हम तो सूखे हुए पत्ते की तरह
ReplyDeleteरोज ही टूट कर बिखरते है
बहुत खूब
गहरी अभिव्यक्ति भावों की।
ReplyDeleteबहुत खूब ... जिंदगी के कुछ लम्हे उदासी में घिर जाते हैं ... उन्ह को याद कर के लिखी रचना ...
ReplyDeletebahut khubsurat
ReplyDeletehmmmmm....दिगंबर जी की बात से सहमत हैं अपन.....
ReplyDeleteहम तो सूखे हुए पत्ते की तरह
ReplyDeleteरोज ही टूट कर बिखरते है
बहुत खूब
उनको कब है ख्याल अपना
ReplyDeleteएक हम ही उनका दम भरते है
beautiful......
mauka mile to aap idhar bhi padharen...
http://bhukjonhi.blogspot.in/