जिंदगी मेरी अब सजा हो
गई
मौत भी मुझसे
बेवफा हो गई
मोहब्बत का पैगाम न आया कोई
जाने हमसे क्या खता हो गई
रंजो गम फैला है इन हवाओं में
क्यूँ हमसे खफा ये सबा हो गई
खामोश बैठे है महफ़िल
में इस तरह
शामे मेरी भी अब बेसदा हो गई
भटकते कदमों की आरही है सदा
उनकी आवारगी की इन्तिहाँ हो गई
(अनु -20/5/2012)
bahut badhiya anu ji
ReplyDeleteमोहब्बत का पैगाम न आया कोई
ReplyDeleteजाने हमसे क्या खता हो गई
बहुत खूब ... लाजवाब शेर है ... वैसे ऐसे पैगाम का न आना खता नहीं उनका अंदाज़ है ...
बहुत ही गहरी रचना..
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteसादर
बहुत खूब
ReplyDeleteKya Lines hain.
ReplyDeletewaah behad khubsurat
ReplyDeleteवाह!!! क्या बात है.... बहुत खूब लिखा है आपने ....
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