कतरा कतरा इल्तिजा करे तो क्या मिले
न अश्के दरिया मिले और न उरूजे वफ़ा मिले
है जिंदगी कि दौड में शामिल हर एक शख्स
हर कोई चाहता है उसे रास्ता मिले
हमको न पढा कीजिये औरों की नजर से
चेहरा न पढ़ सके तो किताबो में क्या मिले
हर बार रिश्तों को समझने कि आरजू में
जो भी मिले सनम वो हमे बेवफा मिले
लगता है नए दौर ए रिवाजों में ये लाजिम
जिसकी खता नहीं हो उसीको सजा मिले
(22/2/2010-अनु)
न अश्के दरिया मिले और न उरूजे वफ़ा मिले
है जिंदगी कि दौड में शामिल हर एक शख्स
हर कोई चाहता है उसे रास्ता मिले
हमको न पढा कीजिये औरों की नजर से
चेहरा न पढ़ सके तो किताबो में क्या मिले
हर बार रिश्तों को समझने कि आरजू में
जो भी मिले सनम वो हमे बेवफा मिले
लगता है नए दौर ए रिवाजों में ये लाजिम
जिसकी खता नहीं हो उसीको सजा मिले
(22/2/2010-अनु)
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है ......
ReplyDeleteसादर , आपकी बहतरीन प्रस्तुती
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
पृथिवी (कौन सुनेगा मेरा दर्द ) ?
ये कैसी मोहब्बत है