Tuesday, February 23, 2010

कतरा कतरा इल्तिजा करे तो क्या मिले

कतरा कतरा इल्तिजा करे तो क्या मिले
न अश्के दरिया मिले और न उरूजे वफ़ा मिले

है जिंदगी कि दौड में शामिल हर एक शख्स
हर कोई चाहता है उसे रास्ता मिले

हमको न पढा कीजिये औरों की नजर से
चेहरा न पढ़ सके तो किताबो में क्या मिले

हर बार रिश्तों को समझने कि आरजू में
जो भी मिले सनम वो हमे बेवफा मिले

लगता है नए दौर ए रिवाजों में ये लाजिम
जिसकी खता नहीं हो उसीको सजा मिले
(22/2/2010-अनु)

1 comment:

  1. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है ......
    सादर , आपकी बहतरीन प्रस्तुती

    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    पृथिवी (कौन सुनेगा मेरा दर्द ) ?

    ये कैसी मोहब्बत है

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