Tuesday, November 9, 2010

सैलाब अश्को के उमड़ आया तो बुरा मान गए




हाले दिल उनको सुनाया तो बुरा मान गए

जख्मे दिल अपना दिखाया तो बुरा मान गए



हमने बांधे हुए थे अपने जज्बात के तूफान

सैलाब अश्को के उमड़ आया तो बुरा मान गए



जो मोहोब्बत में कभी दी थी निशानी मुझको

उसको दुनिया को दिखाया तो बुरा मान गए



बेवफाई का गिला हमसे था अक्सर तुमको

यही सवाल हमने दोहराया तो बुरा मान गए



मुहब्बत में जो साथ गुजारा था कभी 'अनु'

लम्हा वो याद दिलाया तो बुरा मान गए









4 comments:

  1. बात यू तो काम की ही थी,
    हमने कहा तो बुरा मान गये।

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  2. हम आ के चले जाते
    मगर कमेन्ट दे भी दिया
    तो बुरा मान गए...

    हा.हा.हा.सुंदर गज़ल.

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  3. बहुत पसन्द आया
    हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
    बहुत देर से पहुँच पाया .............माफी चाहता हूँ..

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  4. अनु जी,

    आपको मेरे ब्लॉग पर लिखी पोस्ट पसंद आती हैं ...इसके लिए मैं तहेदिल से आपका शुक्रगुज़ार हूँ .....ये आपकी ज़र्रानवाज़ी है |

    आज शायद पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ.....बहुत सुन्दर ब्लॉग है आपका.....बहुत अच्छी रचना है आपकी कुछ शेर बहुत उम्दा लगे और हाँ कुछ मात्रात्मक गलतियाँ मिली है हो सके तो उन्हें दुरुस्त कर लें ....देर से आने की माफ़ी के साथ आपको फॉलो कर रहा हूँ....ताकि आगे भी साथ बना रहे|

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