बहुत दरिया दिल था वो शख्स
छीन कर आँख वो चराग दिखता ही रहा
दर्दे दिल आँख से बह कर निकले
हाल पे मेरे वो चुपचाप मुस्कुराता ही रहा
दिखाया जब भी उसको जख्मे जिगर
नोक से काँटों की मरहम वो लगता ही रहा
बह गई मै भी तेरी चाहत में 'अनु'
इश्क दरिया है लोगो को डुबाता ही रहा
अनु जी,
ReplyDeleteहैट्स ऑफ इस पोस्ट के लिए ......शानदार, बेहतरीन......लाजवाब.....खासकर आखिरी शेर....सुभानाल्लाह|
बेहतरीन गज़ल है।
ReplyDeleteदिखाया जब भी उसको जख्मे जिगर
ReplyDeleteनोक से काँटों की मरहम वो लगता ही रहा
bahut jabardast sher...
kamaal ka lekhan.
सुन्दर!!!
ReplyDeleteइश्क दरिया तो है,पर डूबते उतराते रहें,
ReplyDeleteहोश-ओ-हवास का भी मगर ख्याल तो रखें !