Tuesday, March 29, 2011

इश्क दरिया है लोगो को डुबाता ही रहा


बहुत दरिया दिल था वो शख्स

छीन कर आँख वो चराग दिखता ही रहा

दर्दे दिल आँख से बह कर निकले
हाल पे मेरे वो चुपचाप मुस्कुराता ही रहा

दिखाया जब भी उसको जख्मे जिगर
नोक से काँटों की मरहम वो लगता ही रहा

बह गई मै भी तेरी चाहत में 'अनु'
इश्क दरिया है लोगो को डुबाता ही रहा

5 comments:

  1. अनु जी,

    हैट्स ऑफ इस पोस्ट के लिए ......शानदार, बेहतरीन......लाजवाब.....खासकर आखिरी शेर....सुभानाल्लाह|

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  2. दिखाया जब भी उसको जख्मे जिगर
    नोक से काँटों की मरहम वो लगता ही रहा

    bahut jabardast sher...

    kamaal ka lekhan.

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  3. इश्क दरिया तो है,पर डूबते उतराते रहें,
    होश-ओ-हवास का भी मगर ख्याल तो रखें !

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