शब्द कितना उदास कर सकते हैं अनिता ! और इन्हें लिखने वाला कितना उदास रहता होगा? मुझे अपनी ही दो पंक्तियाँ याद आ रही हैं आंसुओं को ओस की बूंद कहने वालो,तुम क्या जानो रातें भी रोया करती हैं, पेड़ों के गले लगकर आप खुश रहें,यही दुआ है. प्रदीप नील www.neelsahib.blogspot.com
अनु जी,
ReplyDeleteसुभानाल्लाह.....शानदार ग़ज़ल है ....प्रशंसनीय.....ये शेर सबसे अच्छा लगा-
समझेगा मुझे पागल हर देखने वाला
चहरे से कुछ बयान तो होना ही नहीं है
bahut acha likha hai aapne anita ji..
ReplyDeletepadhkar maja aa gaya :)
हम उनको बुलाने का तकाजा नहीं करते
ReplyDeleteइंकार मगर उनसे होना भी नहीं है
सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..
पाना भी नहीं है, खोना भी नहीं है।
ReplyDeleteबहुत खूब।
शब्द कितना उदास कर सकते हैं अनिता ! और इन्हें लिखने वाला कितना उदास रहता होगा?
ReplyDeleteमुझे अपनी ही दो पंक्तियाँ याद आ रही हैं
आंसुओं को ओस की बूंद कहने वालो,तुम क्या जानो
रातें भी रोया करती हैं, पेड़ों के गले लगकर
आप खुश रहें,यही दुआ है.
प्रदीप नील
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