Wednesday, March 23, 2011

चहरे से कुछ बयान तो होना ही नहीं है







दिल से मेरे लिपटा वो किसी राज की सूरत
वो शख्स जिसे मेरा कभी होना नहीं है



इश्को मोहोब्बतों के है किस्से बड़े अजीब
पाना भी नहीं है उसे खोना भी नहीं है



समझेगा मुझे पागल हर देखने वाला
चहरे से कुछ बयान तो होना ही नहीं है



हम उनको बुलाने का तकाजा नहीं करते
इंकार मगर उनसे होना भी नहीं है

5 comments:

  1. अनु जी,

    सुभानाल्लाह.....शानदार ग़ज़ल है ....प्रशंसनीय.....ये शेर सबसे अच्छा लगा-

    समझेगा मुझे पागल हर देखने वाला
    चहरे से कुछ बयान तो होना ही नहीं है

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  2. bahut acha likha hai aapne anita ji..
    padhkar maja aa gaya :)

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  3. हम उनको बुलाने का तकाजा नहीं करते
    इंकार मगर उनसे होना भी नहीं है

    सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..

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  4. पाना भी नहीं है, खोना भी नहीं है।

    बहुत खूब।

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  5. शब्द कितना उदास कर सकते हैं अनिता ! और इन्हें लिखने वाला कितना उदास रहता होगा?
    मुझे अपनी ही दो पंक्तियाँ याद आ रही हैं
    आंसुओं को ओस की बूंद कहने वालो,तुम क्या जानो
    रातें भी रोया करती हैं, पेड़ों के गले लगकर
    आप खुश रहें,यही दुआ है.
    प्रदीप नील
    www.neelsahib.blogspot.com

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यूँ चुप न रहिये ... कुछ तो कहिये