Tuesday, April 19, 2011

जीत का जश्न मनाने की जरूरत क्या थी




बे सबब अश्क बहाने की जरूरत क्या थी
दर्दे दिल सबको दिखाने की जरूरत क्या थी

हम तो खुद हार गए आपकी मोहोब्बत में
जीत का जश्न मनाने की जरूरत क्या थी

गर शिकारी थे तो करते शिकार कोई नया
किसी घायल पर निशाने की जरूरत क्या थी

इतने नाजुक हैं कि सांसो से पिघल जाते है
बिजलियाँ हम पे गिराने कि जरूरत क्या थी
(24/2/2010अनु)

7 comments:

  1. अनु जी,

    सुभानाल्लाह.....हर शेर घायल कर देने वाला है कोई किसी क़दर किसी से कम नहीं ......बहुत खूब ....दाद कबूल करें....

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  2. दरअसल! अपनों को दर्द देने का मज़ा ही कुछ और होता है और उस पे शिकायत, तो फिर माशाअल्लाह

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  3. आदरणीय अनु जी
    नमस्कार !
    वाह जी,
    इस कविता का तो जवाब नहीं !
    .......दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती

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  4. vaah kya baat hai ji aapki kalam to gazel me kafi dhaar-dar ho gayi hai.

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  5. इतने नाजुक हैं कि सांसो से पिघल जाते है
    बिजलियाँ हम पे गिराने कि जरूरत क्या थी

    waah waah! umda ghazal

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  6. गर शिकारी थे तो करते शिकार कोई नया
    किसी घायल पर निशाने की जरूरत क्या थी

    Bahut khoob ... ye to jamaane ki reet hai ... mare huve ko aur bhi maarte hain ... subhaan alla ...

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