Friday, August 31, 2012

ये दिया अपने हाथो से बुझाए कैसे


  
ये जख्मे जिगर हम उठाए कैसे
तुम ही कहो अब मुस्कुराए कैसे

आते है बार बार मेरी आंख मे आंसू
हम अश्क अपने उनसे छुपाए कैसे

तेरी यादो से ही रौशन है मेरी दुनिया
ये दिया अपने हाथो से बुझाए कैसे

जुबां खुलती नही मेरी तेरी महफिल मे
इस भरे बज्म हम कोई गीत सुनाए कैसे  

10 comments:

  1. बहुत उम्दा गज़ल...

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  2. आते है बार बार मेरी आंख मे आंसू
    हम अश्क अपने उनसे छुपाए कैसे ..

    बहुत मुश्किल है इन अश्कों को छुपाना ....
    लाजवाब शेर हैं सभी हकीकत लिए ...

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  3. जुबां खुलती नही मेरी तेरी महफिल मे
    इस भरे बज्म हम कोई गीत सुनाए कैसे behtareen

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  4. वाह - बहुत खूब

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  5. आपकी यह बेहतरीन रचना शुकरवार यानी 11/01/2013 को

    http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर लिंक की जाएगी…
    इस संदर्भ में आप के सुझाव का स्वागत है।

    सूचनार्थ,

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