ये जख्मे जिगर
हम
उठाए कैसे
तुम ही
कहो अब
मुस्कुराए कैसे
आते है
बार बार मेरी आंख मे
आंसू
हम अश्क अपने उनसे छुपाए कैसे
तेरी यादो से
ही रौशन है
मेरी दुनिया
ये दिया अपने हाथो से
बुझाए कैसे
जुबां खुलती नही मेरी तेरी महफिल मे
इस भरे बज्म हम कोई गीत सुनाए कैसे
बहुत खूब...
ReplyDeletebehtarin gazal. sadar.
ReplyDeleteबहुत उम्दा गज़ल...
ReplyDeleteआते है बार बार मेरी आंख मे आंसू
ReplyDeleteहम अश्क अपने उनसे छुपाए कैसे ..
बहुत मुश्किल है इन अश्कों को छुपाना ....
लाजवाब शेर हैं सभी हकीकत लिए ...
जुबां खुलती नही मेरी तेरी महफिल मे
ReplyDeleteइस भरे बज्म हम कोई गीत सुनाए कैसे behtareen
वाह - बहुत खूब
ReplyDeleteआपकी यह बेहतरीन रचना शुकरवार यानी 11/01/2013 को
ReplyDeletehttp://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर लिंक की जाएगी…
इस संदर्भ में आप के सुझाव का स्वागत है।
सूचनार्थ,
बेहतरीन रच्न ।
ReplyDeleteखूबसूरत अहसास
ReplyDeleteखुबसूरत एहसास
ReplyDeleteNew post : दो शहीद