तुम इल्जाम मुझ पर न लगाओ ऐसे
दिल को मेरे पत्थर का न बनाओ ऐसे
मेरा जिगर तार तार हुआ है कई बार
की दिल पर न चोट लगाओ ऐसे
कुछ रंज मुझको पहले ही घेरे हुए है
तुम मुझको हर बार न सताओ ऐसे
शबो रोज याद कर के उस बेवफा को
अब चैन दिल का न तुम गवाओ ऐसे
कहा जाऊ मै अपना जख्मे जिगर लेके
कि खुद को मै दुनिया से छिपाऊ कैसे
बहुत खूब..
ReplyDeleteबेहतरीन गज़ल
ReplyDeleteतुम इल्जाम मुझ पर न लगाओ ऐसे
ReplyDeleteदिल को मेरे पत्थर का न बनाओ ऐसे
Bahut Khub