Monday, January 2, 2012

आंख शब भर मेरी लगती नहीं क्यों

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कयामत की रात ये ढलती नहीं क्यों

खिजा की रुत भी बदलती नहीं क्यों

 

क्याबतलाऊ मैं तुझको ऐ दिलबर

तन्हा रुत अब गुजरती नही क्यों

 

टुटा है जब से ख्वाब मेरी आँखों का

आंख शब भर मेरी लगती नहीं क्यों

 

अब्र आते है बरसते हैं चले जाते है

कली दिल की मगर खिलती नहीं क्यों

 

     बैठी हूँ बीच दरिया में मगर

   प्यास ये मेरी बुझती नहीं क्यों

 

               (अनु )

10 comments:

  1. इन सवालो के जवाब देना तो सच में बेहद मुश्किल है ... बेहद उम्दा रचना !

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  2. सुन्दर रचना ...
    सवाल शाश्वत हैं शायद

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  3. सुंदर रचना !

    आभार !
    नए साल की हार्दिक बधाई आपको !

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  4. मन को छूता अहसास...
    बहुत ही सटीक भाव !!
    अनू जी.... नव वर्ष २०१२ की गहरी शुभकामनाओं सहित !!

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  5. kya kahane...ati sundar wa bhavpoorna prastuti

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  6. चाह जब तक रूह की हो,
    प्यास कब किसकी बुझी है।

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  7. सुभानाल्लाह.........बहुत खूबसूरत हर शेर उम्दा और बेहतरीन|

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  8. सुंदर रचना नए साल की हार्दिक शुभकामनायें

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  9. टुटा है जब से ख्वाब मेरी आँखों का
    आंख शब भर मेरी लगती नहीं क्यों

    आपका लिखा हर शे'र काबिलेतारीफ है .....! प्रशंसनीय रचना ...!

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  10. टुटा है जब से ख्वाब मेरी आँखों का

    आंख शब भर मेरी लगती नहीं क्यों

    sunar rachna ... keep writing

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