कयामत की रात ये ढलती नहीं क्यों
खिजा की रुत भी बदलती नहीं क्यों
क्याबतलाऊ मैं तुझको ऐ दिलबर
तन्हा रुत अब गुजरती नही क्यों
टुटा है जब से ख्वाब मेरी आँखों का
आंख शब भर मेरी लगती नहीं क्यों
अब्र आते है बरसते हैं चले जाते है
कली दिल की मगर खिलती नहीं क्यों
बैठी हूँ बीच दरिया में मगर
प्यास ये मेरी बुझती नहीं क्यों
(अनु )
इन सवालो के जवाब देना तो सच में बेहद मुश्किल है ... बेहद उम्दा रचना !
ReplyDeleteसुन्दर रचना ...
ReplyDeleteसवाल शाश्वत हैं शायद
सुंदर रचना !
ReplyDeleteआभार !
नए साल की हार्दिक बधाई आपको !
मन को छूता अहसास...
ReplyDeleteबहुत ही सटीक भाव !!
अनू जी.... नव वर्ष २०१२ की गहरी शुभकामनाओं सहित !!
kya kahane...ati sundar wa bhavpoorna prastuti
ReplyDeleteचाह जब तक रूह की हो,
ReplyDeleteप्यास कब किसकी बुझी है।
सुभानाल्लाह.........बहुत खूबसूरत हर शेर उम्दा और बेहतरीन|
ReplyDeleteसुंदर रचना नए साल की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteटुटा है जब से ख्वाब मेरी आँखों का
ReplyDeleteआंख शब भर मेरी लगती नहीं क्यों
आपका लिखा हर शे'र काबिलेतारीफ है .....! प्रशंसनीय रचना ...!
टुटा है जब से ख्वाब मेरी आँखों का
ReplyDeleteआंख शब भर मेरी लगती नहीं क्यों
sunar rachna ... keep writing