Tuesday, October 12, 2010

हर तरफ छिटकी चांदनी रात हो

moon


कुछ ऐसी अपनी भी मुलाकात हो
तेरे हाथो ने थामा मेरा हाथ हो
गुफ्तगू में कोई अनोखी बात हो
हर तरफ छिटकी चांदनी रात हो
मजा आता है छुप छुप मिलने का तभी
जब ढूढती हमे सारी कायनात हो
हो होठो पर मिलने की गुजारिश
आँखों में अश्कों की बरसात हो
इश्क नही मानता ऐसी बाते यारा
तुम हो मुफलिस या साहिबे अमारात हो
दुःख में भी लगाओ कहकहा यारो
नामुमकिन है की बाजी मात हो
(अनु -12/10/2010)


6 comments:

  1. जज़्बात पर आपकी प्रतिक्रिया का मैं तहेदिल से शुक्रगुज़ार हूँ..........आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा .........बहुत खुबसूरत रचनाये है आपकी.......ये पंक्तियाँ बहुत पसंद आयीं-
    "इश्क नही मानता ऐसी बाते यारा
    तुम हो मुफलिस या साहिबे अमारात हो
    दुःख में भी लगाओ कहकहा यारो
    नामुमकिन है की बाजी मात हो "

    और खास आपकी पोस्ट के साथ जो तस्वीरें हैं वो बहुत ही अच्छी लगी.......आपकी पसंद की दाद देता हूँ........मैं समझता हूँ की इन तस्वीरों को ढूँढने में कितनी मेहनत करनी पड़ती है.........इस उम्मीद में आपको फॉलो कर रहा हूँ की आगे भी ऐसी ही कुछ बेहतरीन पोस्ट पड़ने को मिलेंगी........शुभकामनाये|

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  2. माफ़ कीजिये मगर मुझे आपके ब्लॉग पर अनुसरण करें/ समर्थक का विजेट नहीं मिला|

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  3. आपकी रचना बहुत ही प्रवाहपूर्ण है

    बहुत अच्छी लगी

    बधाई

    ब्लॉग पर आने को धन्यवाद

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  4. अनीता जी,

    दुःख में भी लगाओ कहकहा यारो
    नामुमकिन है की बाजी मात हो

    बहुत ही ऊम्दा कहा है......

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

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